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Wednesday, August 15, 2012

मेरे दोस्त की प्रेमिका


मेरे दोस्त की प्रेमिका

प्रेषक :विक्की

संपादक : मारवाड़ी लड़का

मेरा नाम विक्की, राजकोट (गुजरात) में रहता हूँ। यह मेरी तीसरी कहानी है म्य्देसिपानु पर।

यह कहानी है मेरे दोस्त विशाल की प्रेमिका अवनी और मेरी !




विशाल मेरा बहुत ही करीबी दोस्त था। हम दोनों रोज एक ही साथ घूमते थे और साथ साथ ही मस्ती करते थे। उसकी एक प्रेमिका थी अवनी। वो बहुत ही खूबसूरत थी।
उसका बदन, उसके मम्मे बहुत ही सेक्सी थे। हम तीनों साथ में ही घूमते फिरते थे।

जब भी हम लोग कहीं घूमने जाते थे, तब वह बार बार विशाल से चिपकती थी, उसे चूमती थी और मुझे देखती रहती थी। पहले पहले मेरे मन में उसे लेकर कोई गलत भावना नहीं थी। पर धीरे धीरे मुझे भी कुछ कुछ होने लगा था। मेरा दोस्त एकदम लल्लू था। वो अवनी की ऐसी हरकतों से झेंप कर दूर हो जाता था।

एक दिन मैंने एक पिकनिक रखी थी हम तीनों के लिए। तीनों एक साथ मेरी कार में पिकनिक गए। हम तय समय से सुबह ही वहाँ पहुँच गए, खाना और बाकी जरुरी सामान भी साथ ले गए थे।

वहाँ हम मस्ती कर रहे थे मगर अवनी का ध्यान मेरी तरफ ही था।

जब हम खेल रहे थे तब अवनी बार बार मुझसे टकराती थी। मैं बहुत बार उससे दूर गया पर वह फिर से पास आ जाती थी।

हमें वहाँ खाना बनाना तो था नहीं, इसलिए विशाल कुछ चीजें लाने बाजार चला गया। अब हम दोनों अकेले थे।

मैं भी अपना कुछ काम करने लगा और गाड़ी से सामान निकालने लगा। तभी अवनी मेरे पास आई और उसने कहा- मैं आपकी मदद करती हूँ ! और वह मुझे छूते हुए काम करने लगी।

मैंने उसे दूर जाने को कहा पर वो और नजदीक आ गई और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।

मैं थोड़ा घबरा गया था पर मेरे अन्दर सेक्स की भूख जाग उठी थी। उसने धीरे से मेरे करीब आकर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर मुझे एक चुम्बन दिया।

मैंने उससे कहा- यह गलत है ! अगर विशाल को पता चला तो अच्छा नहीं होगा !

उसने मुझे समझाया- कुछ नहीं पता चलेगा उस लल्लू को !

और वह मुझे फ़िर चूमने लगी।

मुझसे रहा नहीं गया और मैं भी उसकी चुम्मियों का आनंद लेने लगा। उसने काले रंग की टीशर्ट पहनी थी। मैं उसे अपनी गाड़ी में ले गया और उसकी टीशर्ट को प्यार से निकाल दिया।

टॉप के अन्दर उसने काले ही रंग की ब्रा पहनी थी और उस ब्रा के ऊपर से उसके सफ़ेद दूध दिखाई दे रहे थे। मैंने जोश में आ कर उसकी ब्रा भी निकाल दी और उसके बड़े बड़े दूध चूसने लगा।

करीब पाँच मिनट तक उसके मम्मों के साथ खेलने के बाद उसने मेरी पैंट उतार कर मेरा लौड़ा निकाल लिया और अपने मुट्ठी में भर कर वो मेरा लौड़ा हिलाने लगी। मेरा लौड़ा एकदम लोहे की छड़ की तरह हो गया था। उसने मेरे लौड़े को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया।

मेरी सीत्कारें निकलने लगी ….आह….आह्ह……ऊउइ माँ….।

मुझसे अब रह पाना मुश्किल हो रहा था।

मैंने उसकी पैंट भी निकाल फेंकी। उसकी गुलाबी रंग की पैंटी देख कर मेरे मुँह में पानी आ गया। मैंने पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूम लिया। उसकी चूत बहुत ही गरम थी।

थोड़ी ही देर में उसकी चूत से पानी निकलने लगा। वो रह नहीं पा रही थी। मैंने भी अब देर करना ठीक नहीं समझा और उसे अपनी कार की सीट पर लिटा कर उसकी चूत से अपना लौड़ा सटा कर जैसे ही धक्का लगाया, उसके मुँह से चीख निकल गई- ऊओह्ह्ह !!! इतना बड़ा लौड़ा ! !…इसे जल्दी से मेरे अन्दर डाल दो…प्लीज़ जल्दी से डालो…

उसकी चीखें सुन कर मुझमें दुगना जोश भर गया और मैंने धक्के लगते हुए अपना सात इंच का लौड़ा पूरा उसकी चूत में डाल दिया। अब मैं अपनी कमर हिलाने लगा। वो भी अपनी कमर उचका-उचका कर मजे ले रही थी और मेरे लंड को पूरा अपनी चूत में डलवा रही थी। उसे बहुत मज़ा आ रहा था।

मैंने थोड़ी देर तक ऐसे ही धक्के लगाये और फिर उसे घोड़ी बन कर खड़े होने को कहा। फिर मैं उसके पीछे खड़े हो कर अपना पूरा लंड उसकी चूत में डाल दिया। मुझे भी बहुत मजा आ रहा था।

थोड़ी देर बाद वो झड़ गई और बेहोश जैसे हो गई। अभी मेरा काम ख़त्म नहीं हुआ था इसलिए मैं अभी भी जोर जोर से धक्के मारे जा रहा था। करीब दस मिनट के बाद मेरा लंड भी अपना पानी छोड़ कर मुरझा गया।

अब हम उठ कर अपने कपड़े ठीक कर वापस काम पर लग गए। जब तक विशाल आया, उसे कुछ पता ही नहीं था।

उस दिन के बाद वो मिलती तो विशाल से थी मगर चुदती मुझसे थी ! अब मैं हर तीन दिन में एक बार उसे चोद ही लेता हूँ।

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