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Wednesday, August 15, 2012

माँ की चूत तुम्हारी


माँ की चूत तुम्हारी

एक थे ठाकुर। बड़े ही ठरकी और चोदू किस्म के इंसान थे। जब वे गाँव के औरतों को चोद-चोदकर बोर हो गए, तो उनकी नज़र गाँव की भैंसों, गायों, बकरियों, कुत्तियों पर पड़ी। कई साल ऐसे ही बीत गए, ठाकुर का लौड़ा था कि बस नई-नई तरह की चूतों के सपने देखा करता था। ऐसे में एक दिन उदास हो कर ठाकुर एक तालाब के किनारे बैठे थे, तो उनकी नज़र एक मेंढकी पर पड़ी। बस उनको अपना नया शिकार मिल गया। ठाकुर ने उस मेंढकी को खूब चोदा, और फिर उसे अपनी हवेली में ले आए।

अब तो हवेली में मेंढकी के ठाठ थे, वो ठाकुर की पत्नी और उसकी रंडियों पर ऐसे कमेंट करती कि उनकी झांटें सुलग उठती। ठाकुर जब शाम को आता तो मेंढकी को पुचकार कर कहता, "आओ परी बैठो जांघ पर हमारी खाओ पान सुपारी" और मेंढकी उचककर अपनी गाँड़ मरवाने पहुँच जाती।

ठाकुर की पत्नी ने एक दिन मेंढकी को फँसाने की योजना बनाई। उसने ठाकुर के कपड़े पहने और अपनी जांघ पर एक गरमा-गरम तवा बाँध लिया। फिर वह मेंढकी के कमरे में गई और ठाकुर की आवाज़ में बोली, "आओ परी बैठो जांघ पर हमारी, खाओ पान सुपारी"। मेंढकी अपनी आदत के अनुसार जांघ की ओर लपकी लेकिन उसकी गाँड़ जांघ पर बंधे गर्मा-गर्म तवे पर टकरा गई, और मेंढकी की गाँड़ जलभुन गई। ठाकुर की पत्नी ख़ुश हो गई और चली गई।

शाम को जब ठाकुर घर आया तो अपनी मेंढकी को आवाज़ दी, "आओ परी बैठो जांघ पर हमारी खाओ पान सुपारी"

मेंढकी की गाँड़ में फोड़े पड़ गए थे, चीखकर बोली, "आई थी राँड़ तुम्हारी, जला गई गाँड़ हमारी, अब नहीं खानी पान सुपारी, माँ की चूत तुम्हारी"

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